जय भोलेनाथ ओम नमः शिवाय आप सभी भक्त गणों को नाग पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें, नाग पंचमी के दिन जो भी भक्त नाग देवता की पूजा करके उन्हें दूध से स्नान कराता है उनके निमित व्रत कथा को सुनता या पढता है तो उनके जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता वे धनपति होते हैं तथा सुख समृधि मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है.
तो आइये सुनते हैं नाग पंचमी की पौराणिक कहानी. प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे और सातों के विवाह हो चुके थी। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन उस घर की बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी एक साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने के लिए निकल पड़ीं।
जब बहुएं मिट्टी खोद रही थीं तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने का प्रयास करने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोका और कहा यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब वो सांप एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने सर्प से कहा मैं अभी लौट कर आती हूँ तुम यहां से जाना मत।
इतना कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था वो उसे भूल गई। उसे दूसरे दिन सर्प से बोली हुई बात याद आई तो वो सब को साथ लेकर वहां पहुंची। सर्प अभी भी उस स्थान पर बैठा हुआ था जिसे देखकर छोटी बहु बोली,भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं।’
तब सर्प बोला: अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भाई तुझे मुझसे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली: मेरा कोई भैया! नहीं है, अच्छा हुआ तुम मेरे भाई बन गए। कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सांप मनुष्य रूप धारण करके छोटी बहु के घर आया और उससे कहा कि मैं इसका दूर के रिश्ते का भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था।
उसके विश्वास दिलाने पर परिवार के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना मत और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। छोटी बहू ने वैसा ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। सर्प के घर के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
इस तरह से वो उसके घर में रहने लगी। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा, मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात का ध्यान नहीं रहा और उसने सांप को गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुख जल गया। यह देखकर सर्प की माता को गुस्सा आ गया। परंतु सर्प के समझाने पर वह चुप हो गई।
तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेजना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर घर पहुंचा दिया। इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू उसने जलने लगी और कहने लगी कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए।
सर्प ने जब ये वचन सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा इन वस्तुओं को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर दे दी। सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया। जिसकी प्रशंसा उस राज्य की रानी ने भी सुनी और वो राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए।
राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि उससे वह हार तुरंत ही ले आओ। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह हमें दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार लेकर उन्हें दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सांप भाई को याद किया और उससे प्रार्थना की, भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जैसे ही रानी वो हार पहनें वह सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वो हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प में बदल गया।
यह देखकर रानी चीख पड़ी और डर गई। यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी स्वयं छोटी बहू को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से इसका कारण पूछा तो वह बोली, “राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए ये हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और अगर इसे कोई और पहनता है तो ये उसके गले में सर्प बन जाता है।” छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार दिया।
श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को माँ गौरी को समर्पित यह व्रत मंगला गौरी व्रत के नाम से प्रसिद्ध है। मंगला गौरी व्रत महिलाओं के बीच उनके पति की लंबी आयु के लिए जाना जाता है। मंगला गौरी पौराणिक व्रत कथा
एक समय की बात है, एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन कोई संतान न होने के कारण वे दोनों अत्यंत दुःखी रहा करते थे।
ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी।
परिणाम स्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की।
इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। जो महिला इस मंगला गौरी व्रत का पालन नहीं कर सकतीं, उस महिला को श्री मंगला गौरी पूजा को तो कम से कम करना ही चाहिए।
इस कथा को सुनने के पश्चात विवाहित महिला अपनी सास एवं ननद को 16 लड्डू देती है। इसके उपरांत वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी ग्रहण करतीं है। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीपक से देवी की आरती करती हैं।
व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी अथवा पोखर में विसर्जित किया जाता है। अंत में माँ गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा अवश्य मांगें। इस व्रत एवं पूजा के अनुष्ठा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।
अत: इस मंगला गौरी व्रत को नियमानुसार करने से प्रत्येक व्रती के वैवाहिक जीवन में सुख की बढ़ोतरी होती है. तथा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति एवं पुत्र-पौत्रादि का जीवन भी सुखपूर्वक व्यतीत होता है, ऐसी इस मंगला गौरी व्रत की महिमा वर्णित की जाती है।
श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा Shri Brihaspatidev Ji Vrat Katha
बृहस्पतिवार देव की जय, प्रिय भक्त जनों आज बृहस्पतिवार के दिन आप बड़ी ही दुर्लभ पौराणिक कथा सुनेंगे. जो भक्त इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी।
एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा माँगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा: हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरा पति सारा धन लुटाते रहिते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। साधु ने कहा: देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए।
यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ। जो निर्धन अपनी कुवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा। परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली: महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बाँटती फिरूं।
साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से विलुप्त हो गये। साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे, कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई।
भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा। तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूँ, क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं। इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया। वहाँ वह जंगल से लकडी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुःखी रहने लगी।
एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पडा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा: हे दासी! पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए। दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया।
जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुःखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुःखी हुई होगी। कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी: हे बहन! मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी।
तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। कहो दासी क्यों गई थी? रानी बोली: बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था। ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तार पूर्वक सुना दी। रानी की बहन बोली: देखो बहन! भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घडा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई। दासी रानी से कहने लगी: हे रानी! जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें।
तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई। सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा। घुडसाल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया।
अब पीला भोजन कहाँ से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुःखी थे। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था, इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी।
तब दासी बोली: देखो रानी! तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है। रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे।
दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा। एक दिन राजा दुःखी होकर जंगल में एक पेड़ के नीचे आसन जमाकर बैठ गया। वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। बृहस्पतिवार का दिन था, एकाएक उसने देखा कि निर्जन वन में एक साधु प्रकट हुए। वह साधु वेष में स्वयं बृहस्पति देवता थे। लकड़हारे के सामने आकर बोले: हे लकड़हारे! इस सुनसान जंगल में तू चिन्ता मग्न क्यों बैठा है? लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उत्तर दिया: महात्मा जी! आप सब कुछ जानते हैं, मैं क्या कहूँ।
यह कहकर रोने लगा और साधु को अपनी आत्मकथा सुनाई। महात्मा जी ने कहा: तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति के दिन बृहस्पति भगवान का निरादर किया है जिसके कारण रुष्ट होकर उन्होंने तुम्हारी यह दशा कर दी। अब तुम चिन्ता को दूर करके मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जायेंगे और भगवान पहले से भी अधिक सम्पत्ति देंगे। तुम बृहस्पति के दिन कथा किया करो। दो पैसे के चने मुनक्का लाकर उसका प्रसाद बनाओ और शुद्ध जल से लोटे में शक्कर मिलाकर अमृत तैयार करो। कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वाले प्रेमियों में अमृत व प्रसाद बांटकर आप भी ग्रहण करो।
ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सब मनोकामनाएँ पूरी करेंगे। साधु के ऐसे वचन सुनकर लकडहारा बोला: हे प्रभो! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता, जिससे भोजन के उपरान्त कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे मैं उसकी खबर मंगा सकूं। साधु ने कहा: हे लकडहारे! तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। बृहस्पति के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियाँ लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा, जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जायेगा। इतना कहकर साधु अन्तर्ध्यान हो गए।
धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर में बेचने गया, उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। राजा ने चना गुड आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए, परन्तु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर में भोजन न बनावे न आग जलावे समस्त जनता मेरे यहाँ भोजन करने आवे।
इस आज्ञा को जो न मानेगा उसे फाँसी की सजा दी जाएगी। इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर में करवा दी गई। राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गए। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर लिवा ले गए और ले जाकर भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था। वह वहाँ पर दिखाई नहीं दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिया है। उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उसको कारागार में डलवा दिया। जब लकड़हारा कारागार में पड़ गया और बहुत दुःखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ है, और उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था।
उसी समय तत्काल बृहस्पतिदेव साधु के रूप में प्रकट हुए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे: अरे मूर्ख! तूने बृहस्पतिदेव की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है। अब चिन्ता मत कर बृहस्पतिवार के दिन कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पडे मिलेंगे। उनसे तू बृहस्पतिदेव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। बृहस्पति के दिन उसे चार पैसे मिले। लकडहारे ने कथा कही उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा: हे राजा! तूमने जिस आदमी को कारागार में बन्द कर दिया है वह निर्दोष है।
वह राजा है उसे छोड़ देना। रानी का हार उसी खूंटी पर लटका है। अगर तू ऐसा नही करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा। इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हार देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा लकड़हारे को योग्य सुन्दर वस्त्र-आभूषण देकर विदा कर दिया। बृहस्पतिदेव की आज्ञानुसार लकड़हारा अपने नगर को चल दिया। राजा जब अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब, कुएं तथा बहुत सी धर्मशाला मन्दिर आदि बन गई हैं। राजा ने पूछा यह किसका बाग और धर्मशाला हैं, तब नगर के सब लोग कहने लगे यह सब रानी और बांदी के हैं। तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आरहे हैं, तो उन्होंने बाँदी से कहा कि: हे दासी! देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे। हमारी ऐसी हालत देखकर वह लौट न जायें, इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी होजा।
आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खडी हो गई। राजा आए तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई। तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है, तब उन्होंने कहा: हमें यह सब धन बृहस्पतिदेव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। राजा ने निश्चय किया कि सात रोज बाद तो सभी बृहस्पतिदेव का पूजन करते हैं परन्तु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कहानी तथा रोज व्रत किया करूँगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बँधी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहता।
एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहाँ हो आवें। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहाँ को चलने लगा। मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं, उन्हें रोककर राजा कहने लगा: अरे भाइयों! मेरी बृहस्पतिदेव की कथा सुन लो। वे बोले: लो! हमारा तो आदमी मर गया है, इसको अपनी कथा की पड़ी है। परन्तु कुछ आदमी बोले: अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम करके मनुष्य उठकर खड़ा हो गया।
आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने उसे देख और उससे बोले: अरे भईया! तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया जोत लूंगा। जा अपनी कथा किसी और को सुनाना। इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा किसान के पेट में बड़ी जोर का दर्द होने लगा। उस समय उसकी माँ रोटी लेकर आई, उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुडसवार के पास गई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना।
राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही, जिसके सुनते ही वह बैल उठ खड़ हुए तथा किसान के पेट का दर्द भी बन्द हो गया। राजा अपनी बहन के घर पहुँचा। बहन ने भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे रोज प्रातःकाल राजा जगा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहन से कहा: ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो, मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहन बोली: हे भैया! यह देश ऐसा ही है कि पहले यहाँ लोग भोजन करते हैं, बाद में अन्य काम करते हैं। अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आउं।
वह ऐसा कहकर देखने चली गई परन्तु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने भोजन न किया हो अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था। उसे मालूम हुआ कि उनके यहाँ तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया। राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक होगया, अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी।
एक रोज राजा ने अपनी बहन से कहा कि हे बहन! हम अपने घर को जायेंगे। तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपनी सास से कहा। सास ने कहा हाँ चली जा। परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं है। बहन ने अपने भईया से कहा: हे भईया! मैं तो चलूंगी पर कोई बालक नहीं जाएगा। राजा बोला: जब कोई बालक नहीं चलेगा, तब तुम ही क्या करोगी। बड़े दुःखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया।
राजा ने अपनी रानी से कहा: हम निरवंशी हैं। हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया। रानी बोली: हे प्रभो! बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है, वह हमें औलाद अवश्य देंगे। उसी रात को बृहस्पतिदेव ने राजा से स्वप्न में कहा: हे राजा उठ। सभी सोच त्याग दे, तेरी रानी गर्भ से है। राजा की यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई। नवें महीने में उसके गर्भ से एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा बोला: हे रानी! स्त्री बिना भोजन के रह सकती है, पर बिना कहे नहीं रह सकती।
जब मेरी बहन आवे तुम उससे कुछ कहना मत। रानी ने सुनकर हाँ कर दिया। जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहाँ आई, तभी रानी ने कहा: घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई, गधा चढ़ी आई। राजा की बहन बोली: भाभी मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती। बृहस्पतिदेव ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनाएँ हैं, सभी को पूर्ण करते हैं, जो सदभावनापूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढता है, अथवा सुनता है, दूसरो को सुनाता है, बृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
1.विष्णुVishnuॐ विष्णवे नमः।All Prevailing Lord 2.लक्ष्मीपतिLakshmipatiॐ लक्ष्मीपतये नमः।Consort of Goddess Lakshmi 3.कृष्णKrishnaॐ कृष्णाय नमः।Dark-Complexioned Lord 4.वैकुण्ठVaikunthaॐ वैकुण्ठाय नमः।Home of Lord Vishnu 5.गरुडध्वजाGarudadhwajaॐ गरुडध्वजाय नमः।Name of Lord Vishnu 6.परब्रह्मParabrahmaॐ परब्रह्मणे नमः।The Supreme Absolute Truth 7.जगन्नाथJagannathaॐ जगन्नाथाय नमः।Lord of the Universe 8.वासुदेवVasudevaॐ वासुदेवाय नमः।Indwelling God 9.त्रिविक्रमTrivikramaॐ त्रिविक्रमाय नमः।Conqueror of All the Three Worlds 10.दैत्यान्तकाDaityantakaॐ दैत्यान्तकाय नमः।Destroyer of Evils 11.मधुरिMadhuriॐ मधुरिपवे नमः।Sweetness 12.तार्क्ष्यवाहनTaksharyavahanaॐ तार्क्ष्यवाहनाय नमः।Name of Lord Vishnu’s Carriage 13.सनातनSanatanaॐ सनातनाय नमः।The Eternal Lord 14.नारायणNarayanaॐ नारायणाय नमः।The Refuge of Everyone 15.पद्मनाभाPadmanabhaॐ पद्मनाभाय नमः।The Lord Who has a Lotus Shaped Navel 16.हृषीकेशHrishikeshaॐ हृषीकेशाय नमः।The Lord of All Senses 17.सुधाप्रदायSudha pradayaॐ सुधाप्रदाय नमः। 18.माधवMadhavaॐ माधवाय नमः।Knowledge Filled God 19.पुण्डरीकाक्षPundarikakshaॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः।The Lotus Eyed Lord 20.स्थितिकर्ताSthitikartaॐ स्थितिकर्त्रे नमः।A name of Lord Vishnu 21.परात्पराParatparaॐ परात्पराय नमः।Greatest amongst the greats 22.वनमालीVanamaliॐ वनमालिने नमः।One Who Wears a Garland of Forest Flowers 23.यज्ञरूपाYagyaroopaॐ यज्ञरूपाय नमः। 24.चक्रपाणयेChakrapanayeॐ चक्रपाणये नमः। 25.गदाधरGadadharaॐ गदाधराय नमः।One Who Holds a Mace (Gada )26.उपेन्द्रUpendraॐ उपेन्द्राय नमः।Brother of Indra 27.केशवKeshavaॐ केशवाय नमः।He Who has Beautiful Locks of Hair 28.हंसHamsaॐ हंसाय नमः। 29.समुद्रमथनSamudramathanaॐ समुद्रमथनाय नमः। 30.हरयेHariॐ हरये नमः।The Lord of Nature 31.गोविन्दGovindaॐ गोविन्दाय नमः।One Who Pleases the Cows and the Nature 32.ब्रह्मजनकBrahmajanakaॐ ब्रह्मजनकाय नमः। 33.कैटभासुरमर्दनायKaitabhasuramardanaॐ कैटभासुरमर्दनाय नमः। 34.श्रीधरShridharaॐ श्रीधराय नमः।Holder of Sri 35.कामजनकायKamajanakaॐ कामजनकाय नमः। 36.शेषशायिनीSheshashayiniॐ शेषशायिने नमः। 37.चतुर्भुजChaturbhujaॐ चतुर्भुजाय नमः।Four-Armed Lord 38.पाञ्चजन्यधराPanchajanyadharaॐ पाञ्चजन्यधराय नमः। 39.श्रीमतShrimataॐ श्रीमते नमः।Name of Lord Vishnu 40.शार्ङ्गपाणयेSharngapanaॐ शार्ङ्गपाणये नमः। 41.जनार्दनायJanardanaॐ जनार्दनाय नमः।One Who Helps All Needy People – Like Compassion 42.पीताम्बरधरायPitambaradharaॐ पीताम्बरधराय नमः।He Who Wears Yellow Garments 43.देवDevaॐ देवाय नमः।Divine
44.सूर्यचन्द्रविलोचनSuryachandravilochanaॐ सूर्यचन्द्रविलोचनाय नमः। 45.मत्स्यरूपMatsyaroopaॐ मत्स्यरूपाय नमः।Lord Matsya – An Incarnation of Lord Vishnu
46.कूर्मतनवेKurmatanaveॐ कूर्मतनवे नमः। 47.क्रोडरूपKrodaroopaॐ क्रोडरूपाय नमः। 48.नृकेसरिNrikesariॐ नृकेसरिणे नमः।The Fourth Incarnation of Lord Vishnu
49.वामनVamanaॐ वामनाय नमः।The Dwarf Incarnation of Lord Vishnu
50.भार्गवBhargavaॐ भार्गवाय नमः। 51.रामRamaॐ रामाय नमः।Seventh Incarnation of Lord Vishnu
52.बलीBaliॐ बलिने नमः।The Lord of Strength
53.कल्किKalkiॐ कल्किने नमः।Another Incarnation of Lord Vishnu, Will Appear at the End of Kaliyuga
54.हयाननाHayananaॐ हयाननाय नमः। 55.विश्वम्भराVishwambharaॐ विश्वम्भराय नमः। 56.शिशुमाराShishumaraॐ शिशुमाराय नमः। 57.श्रीकरायShrikaraॐ श्रीकराय नमः।One Who Gives Sri
58.कपिलKapilaॐ कपिलाय नमः।The Great Sage Kapila
59.ध्रुवDhruvaॐ ध्रुवाय नमः।The Changeless in the Midst of Changes
60.दत्तत्रेयDattatreyaॐ दत्तत्रेयाय नमः।Grand Teacher (Guru) in the Universe
61.अच्युताAchyutaॐ अच्युताय नमः।Infallible Lord
62.अनन्तAnantaॐ अनन्ताय नमः।The Endless Lord
63.मुकुन्दMukundaॐ मुकुन्दाय नमः।The Giver of Liberation
64.दधिवामनाDadhivamanaॐ दधिवामनाय नमः। 65.धन्वन्तरीDhanvantariॐ धन्वन्तरये नमः।A Partial Incarnation of Lord Vishnu Appeared After Churning of Ocean
66.श्रीनिवासShrinivasaॐ श्रीनिवासाय नमः।The Permanent Abode of Shree
72.ऋषभायRishabhaॐ ऋषभाय नमः।The Incarnation of Lord Vishnu When He Appeared as the Son of King Nabhi
73.मोहिनीरूपधारीMohiniroopadhariॐ मोहिनीरूपधारिणे नमः। 74.सङ्कर्षणSankarshanaॐ सङ्कर्षणाय नमः। 75.पृथवीPrithviॐ पृथवे नमः। 76.क्षीराब्धिशायिनीKshirabdhishayiniॐ क्षीराब्धिशायिने नमः। 77.भूतात्मBhutatmaॐ भूतात्मने नमः।A Name of Lord Vishnu
78.अनिरुद्धAniruddhaॐ अनिरुद्धाय नमः।One Who Cannot Be Obstructed
79.भक्तवत्सलBhaktavatsalaॐ भक्तवत्सलाय नमः।One Who Loves His Devotees
80.नरNaraॐ नराय नमः।The Guide
81.गजेन्द्रवरदGajendravaradaॐ गजेन्द्रवरदाय नमः।Lord Vishnu Gave a Benediction to Gajendra (Elephant)
82.त्रिधाम्नेTridhamneॐ त्रिधाम्ने नमः। 83.भूतभावनBhutabhavanaॐ भूतभावनाय नमः। 84.श्वेतद्वीपसुवास्तव्यायShwetadwipasuvastavyayaॐ श्वेतद्वीपसुवास्तव्याय नमः। 85.सनकादिमुनिध्येयायSankadimunidhyeyayaॐ सनकादिमुनिध्येयाय नमः। 86.भगवतBhagavataॐ भगवते नमः।Pertaining to Lord (Bhagavan)
87.शङ्करप्रियShankarapriyaॐ शङ्करप्रियाय नमः। 88.नीलकान्तNeelakantaॐ नीलकान्ताय नमः। 89.धराकान्तDharakantaॐ धराकान्ताय नमः। 90.वेदात्मनVedatmanaॐ वेदात्मने नमः।Spirit of the Vedas rests in Lord Vishnu
99.बुद्धावतारBuddhavataraॐ बुद्धावताराय नमः।An Incarnation of Lord Vishnu
100.शान्तात्मShantatmaॐ शान्तात्मने नमः। 101.लीलामानुषविग्रहLila-manusha-vigrahaॐ लीलामानुषविग्रहाय नमः। 102.दामोदरDamodaraॐ दामोदराय नमः।Whose Stomach is Marked With Three Lines
103.विराड्रूपViradroopaॐ विराड्रूपाय नमः। 104.भूतभव्यभवत्प्रभBhootabhavyabhavatprabhaॐ भूतभव्यभवत्प्रभवे नमः। 105.आदिदेवAdidevaॐ आदिदेवाय नमः।The Lord of the Lords
106.देवदेवDevadevaॐ देवदेवाय नमः।The God of the Gods
107.प्रह्लादपरिपालकPrahladaparipalakaॐ प्रह्लादपरिपालकाय नमः। 108.श्रीमहाविष्णुShrimahavishnuॐ श्रीमहाविष्णवे नमः।Name of Lord Vishnu
Are bahut nibha li Are bahut nibha li preet jagat se Ab kar le hari se preet re Teen lok mein hari se sachcha Aur nahi koi meet re
Are bahut nibha li preet jagat se Ab kar le hari se preet re Teen lok mein hari se sachcha Aur nahi koi meet re
Ban ke raha jagat ka har pal Kya kya khel dikhaye re tune Jaise jisne tujhe nachaya Waise hi nachata jaye re pagle Jagat rijhane ko na jaane Gaye kya kya geet re Teen lok mein hari se sachcha Aur nahi koi meet re
Kya khoya kya paya jag mein Kisne sath nibhaya tera Jab jab bhatka tu raste se Kisne tujhko bachaya Hai swarthi jab haal jagat ka Hari nibhaye reet re Teen lok mein hari se sachcha Aur nahi koi meet re
Ab bhi wakt sambhal ja warna Ant samay pachhtayega Chahega hari naam tu lena Par tu le na payega pagle Chhod jagat hari sharan mein aaja Ho jayegi teri jeet re Teen lok mein hari se sachcha Aur nahi koi meet re
Ab Kar Le Hari Se Preet Re Lyrics in Hindi
अरे बहुत निभा ली अरे बहुत निभा ली प्रीत जगत से अब कर ले हरि से प्रीत रे तीन लोक में हरि से सच्चा और नहीं कोई मीत रे
अरे बहुत निभा ली प्रीत जगत से अब कर ले हरि से प्रीत रे तीन लोक में हरि से सच्चा और नहीं कोई मीत रे
बन के रहा जगत का हर पल क्या क्या खेल दिखाए रे तूने जैसे जिसने तुझे नचाया वैसे ही नाचता जाए रे पगले जगत रिझाने को ना जाने गाए क्या क्या गीत रे तीन लोक में हरि से सच्चा और नहीं कोई मीत रे
क्या खोया क्या पाया जग में किसने साथ निभाया तेरा जब जब भटका तू रस्ते से किसने तुझको बचाया है स्वार्थी जब हाल जगत का हरि निभाए रीत रे तीन लोक में हरि से सच्चा और नहीं कोई मीत रे
अब भी वक्त संभल जा वरना अंत समय पछताएगा चाहेगा हरि नाम तू लेना पर तू ले ना पाएगा पगले छोड़ जगत हरि शरण में आजा हो जाएगी तेरी जीत रे तीन लोक में हरि से सच्चा और नहीं कोई मीत रे